मार्च 30, 2010
बात निकली
कहते कहते जब बात निकली,
करहा के हमसे आह निकली|
बंद ताले जब खोले हमने,
गुजरी हुई हर साँस निकली|
देखते देखते सहर हो गयी,
आँखों आँखों में रात निकली|
बंदगी की बाज़ी जीत तो गया,
इसमें खुदी की मात निकली|
कहाँ है तू मेरी हमनफस बता,
कहने को तो तू मेरे साथ निकली|
इसे मंजिल समझने कि भूल थी ‘वीर’,
देख इससे गुजरती कितनी राह निकली|