दिसम्बर 4, 2011
बेखुदी से
तिनका-तिनका मर रहे हैं खुशी से,
हमें क्या कुछ ना हासिल हुआ बेखुदी से|
हम दीवार की दरारों से झांकते हैं उन्हें,
दिखते हैं मेरे जनाब बिखरे-बिखरे से|
हमें क्या कुछ ना हासिल हुआ बेखुदी से…
कुर्बतों का कहर बरपा इस कद्र ‘वीर’,
हाथ उठा मांग रहे हैं फासले सभी से|
हमें क्या कुछ ना हासिल हुआ बेखुदी से…