इस शहर की दुकानों में
इस शहर की दुकानों में,
मुझे बेंच रहा है हुनर मेरा|
मैं खरीद रहा हूँ अपने रास्ते,
और नीलाम हो रहा है सफ़र मेरा|
एक शख्स मेरे अन्दर मुझे,
जीस्त की मजबूरियां गिनाता है|
मैं ढल रहा हूँ बदलते सांचों में,
और बदनाम हो रहा है सफ़र मेरा|
मैं खरीद रहा हूँ अपने रास्ते,
और नीलाम हो रहा है सफ़र मेरा…
वो कौन है जो अब मुझसे,
इन साँसों का हिसाब मांगता है |
मैं लिख रहा हूँ अपनी खलिश को,
और कलाम हो रहा है सफ़र मेरा |
मैं खरीद रहा हूँ अपने रास्ते,
और नीलाम हो रहा है सफ़र मेरा…
क्या सबब है इस वजूद का,
बस मेरा खुदा ही जानता है |
मैं चल रहा हूँ राह-ए-मोहब्बत,
और मकाम हो रहा है सफ़र मेरा |
मैं खरीद रहा हूँ अपने रास्ते,
और नीलाम हो रहा है सफ़र मेरा…
ये दिल किसी नकारा सा ‘वीर’,
एक उसी शख्स को मांगता है |
मैं उठा रहा हूँ हाथ दुआ में,
और कुर्बान हो रहा है सफ़र मेरा |