मार्च 9, 2010
के मैं रास्तों का ही हो गया
चलता गया यूं रास्तों पर उम्र भर,
के मैं रास्तों का ही हो गया|
कोई नहीं आता है लौट के वहाँ से,
अब जो मैं गया तो गया|
के मैं रास्तों का ही हो गया..
मोहब्बत थी कहीं दफन उसमे,
दो आंसू मेरी मज़ार पर रो गया|
के मैं रास्तों का ही हो गया..
तुम जो ना आये मेरी मय्यत पे भी,
मैं भी अपना कफ़न ओढ़ सो गया|
के मैं रास्तों का ही हो गया..
तेरी खुशबू ना मिल सकी ‘वीर’ उसे,
कुछ गुलों को रखके मायूस वो गया|