अक्टूबर 16, 2013
खींच लाया हूँ
समंदर से समंदर तक खींच लाया हूँ,
तन्हा साहिल को अंदर तक खींच लाया हूँ|
मैंने खुद जलाया है अपनी कई हसरतों को,
एक सिकंदर को कलंदर तक खींच लाया हूँ|
तन्हा साहिल को अंदर तक खींच लाया हूँ…
तिनका – तिनका रोज़ उछालता हूँ गुबार उसका,
ज़मीं के सितारों को अंबर तक खींच लाया हूँ|
तन्हा साहिल को अंदर तक खींच लाया हूँ…
न देख पाया जब उसे (खुदा) हर शय में वो,
तब मैं निगहों को मंज़र तक खींच लाया हूँ|