दिसम्बर 6, 2011
ख्वाब है मगर
ये मोड़ भी आया है इबादत-ए-इश्क में,
ख्वाब है मगर उसकी तामीर दुआओं में नहीं|
जिंदगी का सबका अपना ही तजुर्बा है,
इस को जीने का हुनर किताबों में नहीं|
ख्वाब है मगर उसकी तामीर दुआओं में नहीं…
तुमने भी महसूस तो की होगी कभी,
जो कसक ख़ामोशी में है सदाओं में नहीं|
ख्वाब है मगर उसकी तामीर दुआओं में नहीं…
मोहब्बत रहेगी जिंदा हमारे बाद भी ‘वीर’,
इसकी सांस क़ज़ा की पनाहों में नहीं|
ख्वाब है मगर उसकी तामीर दुआओं में नहीं…