जून 24, 2014
कुछ ऐसे पिसे ज़रूरतों की चक्की में
कुछ ऐसे पिसे ज़रूरतों की चक्की में,
खुदको पीछे छोड़ आये.. अपनों की तरक्की में|
मुद्दत का थका हुआ था, तो आख लग गयी,
सारा मंज़र ही बदल गया.. एक झपकी में|
कुछ ऐसे पिसे ज़रूरतों की चक्की में…
रिश्ता धुंधला गया, वक़्त के कोहरे में,
खबर ए रुखसत निगल गए.. एक सिसकी में|
कुछ ऐसे पिसे ज़रूरतों की चक्की में…
जाने किस दाग से आह निकली है ‘वीर’,
कई नाम लिखे हैं मेरी इस हिचकी में|