मार्च 29, 2010
लब तक आते तो हैं
गम जो लफ़्ज़ों में घुल नहीं पाते,
लब तक आते तो हैं|
खत जो हम उन्हें लिख नहीं पाते,
तन्हाई में जलाते तो हैं|
लब तक आते तो हैं…
जो फ़साने उसे हम कह नहीं पाते,
अजनबियों को सुनाते तो हैं|
लब तक आते तो हैं…
तो क्या अगर हवा से बिखर जाए,
हम फिर भी घर बनाते तो हैं|
लब तक आते तो हैं…
क्या थाम लेंगे वो मुझे गिरते हुए,
दोस्त हाथ मिलाते तो हैं|
लब तक आते तो हैं…
हर तमन्ना हासिल हो ज़रूरी नहीं,
हम ख्वाब सजाते तो हैं|
लब तक आते तो हैं…
ना सही दिल में थोड़ी जगह मेरे लिए,
लोग हमको घर बुलाते तो हैं|
लब तक आते तो हैं…
हम ना सही हँसने की हालत में ‘वीर’,
सबको हम थोडा हँसाते तो हैं|
लब तक आते तो हैं…