जून 23, 2010
मंजिलों से रास्ता लेकर
हम भागते रहे मंजिलों से रास्ता लेकर,
वो जुड़ते रहे दिलों में फासला लेकर|
तोड़ कर हमने फिर पहनली जंजीरें,
वो फिर आ गए वही वास्ता लेकर|
हम भागते रहे मंजिलों से रास्ता लेकर…
इन आँखों को अब रंग नहीं दिखते,
बस जमी है एक तस्वीर माजरा लेकर|
हम भागते रहे मंजिलों से रास्ता लेकर…
बीती रात हुआ फिर वही ना ‘वीर’,
रोये हम दीवारों का आसरा लेकर|
हम भागते रहे मंजिलों से रास्ता लेकर…
अब इसे रुसवाई कैसे समझे ‘वीर’,
वो जुदा हुआ होठों पे कुछ कांपता लेकर|