अप्रैल 7, 2010
नादां
ऐसे नादां की हर ठोकर पर गिरते हैं,
फिर भी हम दाना बने फिरते हैं|
कौन मरता है किसी के साथ यहाँ,
कैसे हमदम जाना बने फिरते हैं|
फिर भी हम दाना बने फिरते हैं…
कहने को एक घर है पास लेकिन,
कितने साये वीराना बने फिरते हैं|
फिर भी हम दाना बने फिरते हैं…
जाने क्या ढूँढते हैं गलियों गलियों,
क्यों हम दीवाना बने फिरते हैं|
फिर भी हम दाना बने फिरते हैं…
वक्त भी अजब सौदागर है ‘वीर’,
चंद लम्हे ज़माना बने फिरते हैं|