मार्च 9, 2010
नींद का सौदा
रात घूरता हर तारा है मुझे,
नींद का हर सौदा गवारा है मुझे|
जागते जागते आंखें थक गई,
किस मर्ज़ ने मारा है मुझे|
नींद का हर सौदा गवारा है मुझे…
इस खेल का वो पुराना खिलाडी है,
उसने हर शर्त पे हारा है मुझे|
नींद का हर सौदा गवारा है मुझे…
मैं तो ढलता गया तेरे हुकुम पर,
जिंदिगी तूने क्यों नकारा है मुझे|
नींद का हर सौदा गवारा है मुझे…
अब जो भी दे सज़ा मंजूर है ‘वीर’,
इलज़ाम कबूल सारा है मुझे|