01 दिसंबर 2011
पथराई आँखों को अब ख्वाब ना दे
मैं कब का जा चूका हूँ मुझे आवाज़ ना दे,
इन पथराई आँखों को अब ख्वाब ना दे|
कोई भी सिरा खुला ना छोड़ फ़साने का,
अंजाम की शक्ल में मुझे आगाज़ ना दे|
इन पथराई आँखों को अब ख्वाब ना दे…
मुझे गवारा हो गयी तुम्हारी ख़ामोशी,
सवाल को सवाल रहने दे अब जवाब ना दे|
इन पथराई आँखों को अब ख्वाब ना दे…
इतना सब्र कहाँ से मिला तुझे हमनफस,
उम्र भर पूछता रहा भले कोई जवाब ना दे|
इन पथराई आँखों को अब ख्वाब ना दे…
अपनी तनहाई से भी क्या पर्दा ‘वीर’,
इस सूनेपन को बेखुदी का नकाब ना दे|
इन पथराई आँखों को अब ख्वाब ना दे…