सितम्बर 11, 2013
ताकत बहुत चाहिए
खामोश रहने के लिए, ताकत बहुत चाहिए,
ज़ुल्म सहने के लिए, आदत बहुत चाहिए|
यूँ तो मुझे भी हासिल है अदा रूठने की,
रूठे रहने के लिए, अदावत बहुत चाहिए|
ज़ुल्म सहने के लिए, आदत बहुत चाहिए…
उम्र भर हम तुझे दुआओं में मांगते रहे,
मगर असर के लिए, इबादत बहुत चाहिए|
ज़ुल्म सहने के लिए, आदत बहुत चाहिए…
अब क़ैद-ए-वफ़ा से मैं रिहाई चाहता हूँ,
मेरे मुंसिफ को मगर, ज़मानत बहुत चाहिए|
ज़ुल्म सहने के लिए, आदत बहुत चाहिए…
ये तिश्नगी कैसी है जो बुझती ही नहीं,
दिल ए कमज़र्फ को, मोहब्बत बहुत चाहिए|
ज़ुल्म सहने के लिए, आदत बहुत चाहिए…
छू कर जाए दिल मगर खरोंच न हो ‘वीर’,
मेरे नुकीले शैरों को, नजाकत बहुत चाहिए|
ज़ुल्म सहने के लिए, आदत बहुत चाहिए…