जून 9, 2010
तेरी कांपती उँगलियाँ
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ,
जैसे सूखे फूल पर नाचती तितलियाँ|
कितना कुछ समाया था सायों में,
गूंजती रही देर तलक खामोशियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ…
ख्यालों से बेपनाह मोहब्बत तक,
क्या क्या ना था हमारे दरमियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ…
वक्त को रुसवा कर गयी मोहब्बत,
ढूँढ रहा था वो अपनी खोई कश्तियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ…
तू पहला तो नहीं है ना ‘वीर’,
कितनों ने की है फ़ना हस्तियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ..
कोई तो है जिसने सुना तुझे ‘वीर’,
वरना दम तोड़ देती तेरी सिसकियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ…