दिसम्बर 21, 2009
वक़्त
वक़्त ने तजुर्बों की बना दी दास्ताँ,
टूटे रिश्ते सारे,
रह गए बस कुछ सवाल दरमियाँ|
रुखसत पे अलविदा क्यों कहते,
ख़ामोशी की अपनी थी एक जुबां|
वक़्त ने ताजुर्बून की बना दी दास्ताँ…
ख़त्म हुआ अब दर्द का एहसास भी,
जाते क्यों नहीं दिल से, सितम के निशां|
वक़्त ने तजुर्बों की बना दी दास्ताँ…
मकबूल हमें तेरी बेवफाई सनम,
अब नहीं होते किसी पे कुर्बान|
वक़्त ने तजुर्बों की बना दी दास्ताँ…
थक गयी इंतज़ार करती साँसे,
थोड़ी देर और सही वस्ल के गुम्मां|
वक़्त ने तजुर्बों की बना दी दास्ताँ…