24 मई 2014
आँखें खोल कर देख!
ज़हन से ख्याल झाड़ कर देख,
डर्र की आँख में झाँक कर देख|
जिंदिगी से खुद को मांग कर देख,
अपने वजूद को पहचान कर देख|
लम्हे को कभी बाँध कर देख,
वक़्त के दरिये को थाम कर देख|
हदों की सरहद को लांघ कर देख,
हिम्मत को सर पर बाँध कर देख|
खुद को सवालों से निकाल कर देख,
चिंताओं को कल पर टाल कर देख|
ख्वाइशों के तारों को बुझा कर देख,
हसरतों के अब्र को गला कर देख|
ज़रूरतों से आगे ज़रा जा कर देख,
खुशियों से परे कुछ पा कर देख|
एक दिन को मज़हब भुला कर देख,
अपने अंदर खुदा को बुला कर देख|
जिम्मेदारियों की जंजीर तोड़ कर देख,
तू खुद अपने से रिश्ता जोड़ कर देख|
आँखों से अश्क बहा कर देख,
गम की इन्तिहा तक जा कर देख|
गड़े मुर्दों को उखाड़ कर देख,
माज़ी के पन्नों को फाड़ कर देख|
समाज के नज़रिये को हटा कर देख,
तू आँखों को दुनिया पर गाड़ कर देख|
आँखें खोल कर देख!
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Santosh Gupta