जून 24, 2014
कोई धार तो मुझे बहा ले!
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे|
ऊब गया हूँ देख-देख कर,
बहता पानी, रुके किनारे|
विचारों का प्रवाह निरंतर,
मैं की खोज में भटकता अंतर|
या इस कंकड़ को जल बना ले,
या इस कंकड़ को तल बना ले|
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे…
मुट्ठी में क्षण नहीं समाता,
बहता समय है कहाँ तक जाता?
कैसे प्रश्नों से उत्तर निकाले,
कौन ज्ञान की परिभाषा डाले!
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे…
कलकल करती ध्वनि सुनता हूँ,
अतीत भविष्य के जाल बुनता हूँ|
पल पल गिरता जो मुझे उठा ले,
एक पल ऐसा जो मुझे समा ले|
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे…
जनम मृत्यु का खेल पुराना,
एक कण आना, एक कण जाना|
जीवन का क्या अर्थ निकाले,
इसे जैसा चाहे वैसा बना ले|
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे…