सितम्बर 20, 2011
सावन मेरे
लौटे नहीं हैं परदेस से साजन मेरे,
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे|
अब आये हो तो दर पर ही रुकना,
पांव ना रखना तुम आँगन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…
तेरी ये गडगडाहट, तेरी ये अंगडाईयां,
इनसे मुख्तलिफ नहीं हैं मेरी तन्हाईयां,
चाहे तो बहा ले कुछ आंसूं दामन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…
तेरी बूंदों से मेरी तिशनगी ना मिटेगी,
तेरी कोशिशों से ये आग और बढ़ेगी|
तुझसे ना संभलेंगे तन मन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…