दिसम्बर 21, 2009
एक ख्याल
उन लम्हों को फिर जिया जाए आज,
चुभा था जिसका कांटा,
उस गुल को फिर छुआ जाए आज|
अपना मुकद्दर हातों में लिए फिरता हूँ,
कुछ तकदीरों का मज़ा भी लिया जाए आज|
सूख चली हैं ज़िन्दगी की राहें,
वक़्त भर चला ज़ख्म,
एक अश्क पलकों में छुपा के,
बारिशों का मज़ा लिया जाए आज|
सोचता हूँ साकी को रुसवा कर दूं,
चलो उसकी आँखों से फिर पी जाए आज|
अब कोई नहीं वहां आंखें बिछाए,
फिर भी आवारा दिली में,
उन रास्तों पे फिर गुजरा जाए आज|
अब तो बस यादें हैं,
क्यों रोया है दिल,
जैसे बिछड़ा है वो फिरसे आज|
‘वीर’ तेरे कुछ सवालों का जवाब उनके पास नहीं,
बेबस खामोशियों की सदा सुनी जाए आज|