एक पिटारा लाया हूँ
एक पिटारा लाया हूँ|
इसमें है कुछ ख्याल उड़ते,
कुछ ख्वाब मचलते,
कुछ मायूस से सवाल,
कुछ लफ़्ज़ों को तरसते जवाब|
एक पिटारा लाया हूँ …
कुछ तसवीरें मेरी ज़हन की है इसमें,
मेरी अपनी बनाई हुई हैं ये|
इनमे कोई रंग नहीं भर पाया हूँ|
एक पिटारा लाया हूँ …
कुछ रंगों की पोटली भी है इनमे,
तुम भर देना रंग..
मैं भी देखूँ कैसा दिखता हूँ मैं तुम्हारी नज़र से|
एक पिटारा लाया हूँ …
इन्हें मैंने सहेज के बंद किया है,
रस्ते भर बच्चों से सिसकते रहे हैं ये|
किसी राहगीर को तकलीफ ना हो,
ये सोचके इन्हें डरा रखा है मैंने|
तुम जब इन्हें खोलोगी तो,
तुम्हारे दामन को पकड़ के बहुत रोयेंगे ये|
तुम नाराज़ ना होना,
मैंने इनको ज्यादा साँस लेने नहीं दिया|
एक पिटारा लाया हूँ …
इसको इन रेशम की डोरों से मैंने बांधा है – हमारे मरासिम जैसे …
ये फिसलते हैं छूने से,
इनकी घठाने पक्की नहीं होती|
खोलके देखो ना इसे …
एक पिटारा लाया हूँ …