जून 7, 2010
जहाँ हम मिले थे
जहाँ कुछ लम्हें, मेरा हिस्सा बन गए|
जहाँ लम्हों में, सदियाँ गुज़ार गई थी|
जहाँ तेरी कसक मेरी तलाश थी|
जहाँ एक लहर समुन्दर बन गयी थी|
जहाँ खुदी सिर्फ एक खिलौना थी|
जहाँ वहम का वजूद नहीं था|
जहाँ सही गलत के दायरे खोखले थे|
जहाँ दर्द मोहब्बत में बिखरा था|
जहाँ आरजू सिसकती नहीं थी|
जहाँ ख्याल पहुँच नहीं पाते थे|
जहाँ लफ्ज़ हथियार डाल देते थे|
जहाँ ख्वाब खुदको तन्हा पाते थे|
जहाँ कुछ धुंधला सा… आँखों में तस्वीर सा जम गया था|
हाँ वो जगह,
जहाँ तुम और मैं मिले थे…