जुलाई 7, 2010
जिस्म से रूह तक
जिस्म से रूह तक सब लडखडाता है,
जंग खाया कोई रिश्ता टूटता जाता है|
फिर संग लिए अपने कांधों पर,
कोई दीवाना घर नया बनाता है|
जंग खाया कोई रिश्ता टूटता जाता है…
अपने अश्कों की कद्र उसे कब थी,
उसकी राहों में फूल बिछाता है|
जंग खाया कोई रिश्ता टूटता जाता है…