फ़रवरी 27, 2010
कोयले का अंगार
कोयले का अंगार देखा है..
कैसे तिनका तिनका जलके राख होता है|
उसकी राख उस से लिपट कर,
उसे ही भुझाने लगती है..
उसका अपना ही कुछ,
उसकी घुटन बन जाता है..
उसे इंतज़ार है हवा के एक झोंके का..
कोयले का अंगार देखा है..
कभी भडकता, कभी घुटता ..
उम्र भर जलकर, उसे राख ही तो होना है|
कोयले का अंगार देखा है..